उच्चतम न्यायालय ने SBI को इलेक्टोरल बॉन्ड की पूरी जानकारी सार्वजनिक करने को कहा
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को फटकार लगाते हुए कहा कि वह “स्पष्ट और निष्पक्ष” रहें और चयनात्मक न हों, तथा चुनावी बांड के डेटा का “पूर्ण खुलासा” करने का निर्देश दिया है, जिसे वह चुनाव आयोग को अपने वेबसाइट पर प्रकाशित करने के लिये प्रदान करे। साथ ही इस बाबत स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को हलफनामा दाखिल करने का भी निर्देश दिया है।
माननीय न्यायालय ने कहा कि “भारतीय स्टेट बैंक से अपेक्षा की गई थी कि वह चुनावी बांड के संबंध में हर संभावित विवरण दे। लेकिन अब आपके रवैया से ऐसा लगता है कि ‘आप हमें विवरण देने के लिए कहें, तब हम देंगे’।
एसबीआई को चयनात्मक नहीं होना चाहिए। एसबीआई को अदालत के प्रति स्पष्टवादी और निष्पक्ष होना होगा ।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड ने पांच-न्यायाधीशों की पीठ का नेतृत्व करते हुए एसबीआई को संबोधित किया, जिसका प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने किया।
सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि चुनाव आयोग को भेजी गई चुनावी बांड की जानकारी में चुनावी बांड योजना के तहत सभी राजनीतिक दलों के खरीद के संदर्भ में और योगदान की प्राप्ति के संदर्भ में सभी प्रकार के विवरण शामिल होने चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जैसे ही बैंक द्वारा जानकारी दी जाती है, चुनाव आयोग को “तुरंत” जानकारी अपनी वेबसाइट पर अपलोड करनी होगी।
5 जजों की बेंच ने स्पष्ट किया कि उसके 15 फरवरी के फैसले ने गुमनाम राजनीतिक फंडिंग की चुनावी बांड योजना को खारिज कर दिया था, जिसमें 12 अप्रैल, 2019 से फैसले की तारीख तक खरीदे और भुनाए गए इलेक्टोरल बॉन्ड के डेटा का खुलासा करने को ECI को निर्दिष्ट किया गया था।
कोर्ट में सुनवाई के दौरान, श्री हरीश साल्वे ने कहा कि एसबीआई को चुनाव बांड पर प्रत्येक विवरण का खुलासा करने में कोई परेशानी नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने एसबीआई से अल्फ़ान्यूमेरिक संख्याओं के उद्देश्य के बारे में सवाल किया। कि क्या यह एक सुरक्षा सुविधा है या यह ऑडिट ट्रेल बनाने में मदद करने के लिए है?”
केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल श्री तुषार मेहता ने अदालत का ध्यान तथ्यों और संख्याओं के विरूपण और फैसले से चुनावी बांड के डेटा के प्रकाशन के बाद होने वाले मैनिपुलेशन की ओर आकर्षित किया।
जिसके जवाब में मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि फैसला सुनाने के साथ ही अदालत का कर्तव्य समाप्त हो गया।
चुनावी बॉण्ड क्या है?
चुनावी बांड योजना पारदर्शी राजनीतिक फंडिंग की सुविधा के लिए भारत में शुरू किया गया वित्तीय उपकरण हैं। जो भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) द्वारा जारी किए जाते हैं।एसबीआई इस उद्देश्य के लिए अधिकृत बैंक के रूप में कार्य करता है। चुनावी बांड व्यक्तियों और कॉर्पोरेट संस्थाओं को गुमनाम रूप से राजनीतिक दलों को रुपया दान करने की अनुमति देता हैं। ये बांड सरकार द्वारा अधिसूचित निश्चित अवधि के दौरान एसबीआई शाखाओं से 1000 रुपये के मूल्यवर्ग में खरीदे जा सकते हैं। राजनीतिक दल एक निश्चित अवधि के भीतर अपने निर्दिष्ट खातों के माध्यम से ही इन बांडों को भुना सकते हैं।
केंद्रीय बजट 2017-18 के दौरान वित्त विधेयक, 2017 में चुनावी बांड पेश किए गए थे, जब पारदर्शिता बढ़ाने के लिए केंद्रीय वित्त और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्री अरुण जेटली द्वारा राजनीतिक दलों को नकद दान की अधिकतम सीमा 2,000 रुपये तय की गई थी।
सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक घोषित किया
15 फरवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक घोषित कर दिया। दाता का गुमनामी होना इस योजना की मुख्य विशेषता थी, जिसकी पारदर्शिता को लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा लंबे समय से आलोचना की जा रही थी कि चुनाव से संबंधित सभी प्रक्रिया पारदर्शी होना चाहिए वह चाहे चुनाव हो या चुनाव के लिए चन्दा।